तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है...
तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है...जैसे रोज़ सुबह उठ करके
जाकर दूर कहीं वादी में
कुदरत के आँचल से महकी
कुछ एक सांसें खुद में भरना
झरनों से संगीत मांगना
किसी पेड़ की छांव बैठकर
खुद ही में खुद को तलाशना
अपने ही भीतर जा करके
खुद अपने से आँख मिलाना
जैसे सब उलझनें सुलझना
जैसे सब गिरहों का खुलना
जैसे सारे बंध टूटना
जैसे राहों का मिल जाना
जैसे दीवारों का ढहना
जैसे रोज़ सुबह का आना
आसमान में चाँद का खिलना
आँखों में ख्वाबों का उगना
सांसों में फूलों का खिलना
सुन्दर से यह सुन्दरतम है
तुम्हें चाहना कुछ ऐसा है....
1 टिप्पणी:
इस सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी चिट्ठा जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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